शरद जोशी के 40+ अनमोल व्यंग्य और कथन | 40+ Best Sharad Joshi Quotes in Hindi

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Hindi Kala presents famous Satirist शरद जोशी के 40+ अनमोल व्यंग्य और कथन | 40+ Best Sharad Joshi Quotes in Hindi

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Sharad Joshi

शरद जोशी एक विख्यात साहित्यकार, उपन्यासकार, नाटककार, सतीरिक और उपन्यास लेखक थे। वे मशहूर हास्य-व्यंग्यकार भी थे और उनकी लेखनी में जीवन के विभिन्न पहलुओं के व्यंग्य को उजागर करती थी। उन्होंने अपनी कला से भारतीय समाज के विभिन्न मुद्दों पर व्यंग्य व्यक्त किया था जो उन्हें एक अद्भुत साहित्यकार बनाता है। शरद जोशी का जन्म 21 सितंबर, 1931 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था और उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से भारतीय साहित्य को अनेक नए मोड़ों पर ले जाने में अहम भूमिका निभाई।

शरद जोशी के अनमोल कथन | Sharad Joshi Quotes in Hindi

01. राजनीति के चरित्र में एक ही ख़ूबी है कि उसका कोई चरित्र नहीं होता!

02. भारतीयों को वही व्यक्ति उधार दे जिसका पुनर्जन्म में विश्वास हो।

03. जनता प्रजातंत्र की माँ है, तो अफ़सर उसका बाप।

04. प्रेम की पीड़ा गहरी होती है, पर गरीब की पीड़ा उससे भी गहरी होती है।

05. पद का सम्मान मनुष्य से अधिक होने लगा, गहनों का सम्मान शरीर से अधिक, बदन सस्ता और कपड़े महंगे हो गए

06. कौन कहता है कि हमारी सरकार ठोस कदम नहीं उठाती, पर वो इतने ठोस होते हैं कि उठ ही नहीं पाते हैं।

07. यह निश्चित है कि अगर छत से पानी नहीं चू रहा तो लिखने के लिए बरसात से प्यारा वक़्त कोई नहीं होता।

08. लेखक विद्वान हो न हो, आलोचक सदैव विद्वान होता है।

09. मनुष्य जब वर्तमान से पीड़ित होता है, तो उसे अतीत की याद आ ही जाती है।

10. अतिथि केवल देवता नहीं होता। वह मनुष्य और कई बार राक्षस भी हो सकता है।

11. चरित्रवान व्यक्ति, इस देश के प्रजातंत्र में वोटर से अधिक कुछ नहीं हो सकता।

12. प्रजातंत्र देश की आत्मा हो या ना हो, नेता अवश्य परमात्मा है।

13. बड़े लोगों का काम न करने का तरीका तो यही है – वे आश्वासन देते हैं।

14. आवश्यकता आविष्कार की जननी है तो यह भी विश्वास रखिए कि आलस आविष्कार का बाप है।

15. उधार लेना एक कला है और उसे नही लौटाना उससे बड़ी कला । सतत प्रयास , सूझ-बूझ , धैर्य , माधुर्य भाषण और अध्य्वसाय से आदमी उधार लेने और न लौटाने मे कुशल हो जाता है ।

16. कई बार लगता है, इस असार संसार में हमारा जन्म केवल सामान खरीदने के लिये हुआ है।

17. देश का आधा बजट तो सरकारी अफ़सरों के पेट में जाता है।

18. राह कोई नहीं बताता, सब लक्ष्य पूछते हैं जो उनका नहीं है।

19. लेखक का साहित्य के विकास में महत्व है या नहीं है यह विवादास्पद विषय हो सकता है पर किसी साहित्यिक के विकास में किसी आलोचक का महत्व सर्वस्वीकृत है।

20. हुकुमत का पहला उसूल यह है कि आम आदमी को बेवकूफ बनाए रखो! पूरी राजनीति का निचोड़ है यह निचोड़! मंत्र है यह महामंत्र।

21. जनता को कष्ट होता है मगर ऐसे में नेतृत्व चमक कर ऊपर उठता है। अफसर प्रमोशन पाते हैं और सहायता समितियां चन्दे के रुपये बटोरती हैं। अकाल हो या दंगा, अन्तत: नेता, अफसर और समितियां ही लाभ में रहती हैं।

22. सब कुछ जानते हुए भी ऐसा भाव दर्शाना की इस यथार्थ की जानकारी तो मुझे पहली बार हुई और एक मीठा और थोथा आश्वासन दे देना ही तो मात्र राजनीति रह गयी है इस युग की।

23. हिंदी में लोकप्रिय होना अपराध है। मैं पुराना अपराधी हूँ।

24. तंत्र जब अपने चेहरों को छुपाने के लिए एक और चेहरा उत्पन्न करता है, उस पर वे सब कैसे आस्था रख सकते हैं, जो तंत्र के चरित्र और स्वभाव से परिचित हैं।

25. हमारे यहाँ कहा जाता है – “ईश्‍वर आपकी यात्रा सफल करें।” आप पूछ सकते हैं कि इस छोटी-सी रोजमर्रा की बात में ईश्‍वर को क्‍यों घसीटा जाता है? पर जरा सोचिए, रेल की यात्रा में ईश्‍वर के सिवा आपका है कौन? एक वही तो है जिसका नाम लेकर आप भीड़ में जगह बनाते हैं।

26. राजनीति मे शर्मिंदा होने का रिवाज़ नहीं रहा। आजकल राजनीति मे कोई शर्मिंदा होता भी है तो दूसरों के कृत्य के लिए। खुद के कृत्य पर कभी शर्मिंदा नहीं होता।

27. शिक्षक हो जाना हमारे राज्य का प्रिय व्यवसाय है। कहीं नौकरी न मिले तो लोग शिक्षक हो जाते हैं। मिल जाए तो पत्नी को शिक्षिका बना देते हैं। हमारे यहां दूल्हा-दुल्हन सुहागरात को भी एजुकेशन डिपार्टमेंट के बारे में बात करते हैं।

28. कई बार मुझे यह भ्रम हो जाता है कि देश प्रगति कर रहा है और कई बार यह भ्रम हो जाता कि, यह भ्रम नहीं है, वाकई कर रहा है।

29. आलस और जरूरत का सुखद संयोग ही विज्ञान का कारक है।

30. शासन की हिंसा संवैधानिक बन जाती है।

31. अपनी उच्च परंपरा के लिए संस्कृत, देश की एकता के लिए मराठी या बंगला, अपनी बात कहने समझने के लिए हिंदी और इस पापी पेट की खातिर अंग्रेजी जानना जरूरी है।

32. देश बाढ़ में डूबता है और नेता चिंता में डूबते हैं। वर्ष में एकाध माह यह कार्यक्रम बड़ी गंभीरता से चलता है । फिर पानी उतर जाता है । नेताजी के पास डूबने को और भी कई चीज़ें हैं , जैसे सत्ता, राजनीति , ऐश ।

33. आध्यात्मिक भारत में ‘आध्यात्मिक’ कहां है ? यह पता लगाना उतना ही कठिन है, जितना शरीर नामक जगह में आत्मा नामक किसी चीज का पता लगाना।

34. अब वक्त आ गया है की स्कूल और कालेजो मे घास छीलने की शिक्षा दी जाना आरम्भ कर दी जाय ।

35. देश की धरती पैदा करना जानती है। नेताओं को ही ले लीजिए गांव तहसील और प्रांत स्तर के नेताओं की जब जहां जरूरत होती है वह वहां पैदा होता है।

36. राजनीति मे शर्मिंदा होने का रिवाज़ नहीं रहा। आजकल राजनीति मे कोई शर्मिंदा होता भी है तो दूसरों के कृत्य के लिए । खुद के कृत्य पर कभी शर्मिंदा नहीं होता ।

37. जिस प्रकार कैक्टस की शोभा कांटों से, राजनीति लम्पटों से जानी जाती है उसी प्रकार वित्त मंत्री विचित्र करों तथा उलजलूल आर्थिक उपायों से जाने जाते हैं।

38. यदि आप बगुले को गौर से देखो , स्थानीय नेता सा लगता है । शिकार पर नजर रखे विनय की प्रतिमूर्ति । ऊपर से धीर गम्भीर अन्दर से महाचालू और चालाक।

39. सब कुछ जानते हुए भी ऐसा भाव दर्शाना की इस यथार्थ की जानकारी तो मुझे पहली बार हुई और एक मीठा और थोथा आश्वासन दे देना ही तो मात्र राजनीति रह गयी है इस युग की ।

40. साहित्य से पैसा कमाने का घनघोर विरोध वे ही करते है जिनकी लेक्चररशिप पक्की हो गयी हो और वेतन नये बढ़े हुए ग्रेड मे मिल रहा हो ।

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