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ज़रा-सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है
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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
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ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता, मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है
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तुम चाहो तो कोरे कागज पर आडी तिरछी रेखाएं खीच दो, कुछ रिश्तों को कभी लफ्जों की दरकार नही रहती, फौजी की अनपढ़ माँ खत को सीने से लगाकर सोयी है!
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