Jagjit Singh – Mirza Ghalib Ghazal Bazeecha E Atfaal Hai Duniya Mere Aage | बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे | Album – Mirza Ghalib (1988)

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Hindi Kala presents Mirza Ghalib Ghazal Bazeecha E Atfaal in the voice of Jagjit Singh from the show Mirza Ghalib by Gulzar.

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Nasruddin Shah as Mirza Ghalib

This wonderful Ghazal is from ‘Mirza Ghalib’, an Indian biographical television drama series written and produced by poet Gulzar Saab. All the Ghazals in this TV series are composed and sung by Jagjit Singh & Chitra Singh. 

Its music has since been recognized as Jagjit Singh and Chitra Singh’s magnum opus enjoying a cult following in the Indian subcontinent. 

In 1998, Jagjit Singh was awarded Sahitya Academy Award, a literary honor in India. He was awarded for popularizing the work of Mirza Ghalib.

Mirza Ghalib Ghazal Bajicha E Atfaal in Hindi

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे ।

होता है निहाँ गर्द में सेहरा मेरे होते,
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे ।

मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
तू देख के क्या रंग है तेरा मेरे आगे ।

ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र,
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे ।

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है,
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे ।


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Album: Mirza Ghalib (1988)
Music: Jagjit Singh
Lyrics: Mirza Ghalib
Singer: Jagjit Singh
Performed by: Naseeruddin Shah


Lyrics in English & Translation

Bazeecha-E-Atfal Hai Duniya Mere Aage,
Hota Hai Shab-O-Roz Tamasha Mere Aage
(The world is a children’s playground before me
Night and Day, this theatre is enacted before me)

Hota Hai Nihan Gard Mein Sehra Mere Hote
Ghista Hai Zabeen Khak Pe Dariya Mere Aage
(Next to me, the wilderness is shamed into hiding in dust
The servile river grovels in the dust before me)

Mat Pooch Ke Kya Haal Hai Mera Tere Peechhe
Too Dekh Ke Kya Rang Hai Tera Mere Aage
(Do not ask what my condition is without you
Just look at your own comportment before me)

Imaan Mujhe Roke Hai, Jo Kheenche Hai Mujhe Kufra
Kaba Mere Peechhe Hai Kalisa Mere Aage
(Faith retards me, where idols lure me
Kaaba is behind me, the church is before me)

Go Hath Ko Jumbish Nahin Ankhon Men To Dum Hai,
Rehne Do Abhi Sagar-O-Meena Mere Aage
(Even when hands have no movement, sight retains vitality
So leave the accoutrements of wine before me)

Mohammad Rafi singing Bazeecha E Atfaal
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Here is the complete Mirza Ghalib Ghazal Bazeecha E Atfaal : 

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे ।

इक खेल है औरंग-ए-सुलेमाँ मेरे नज़दीक,
इक बात है ऐजाज़-ए-मसीहा मेरे आगे ।

जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर,
जुज़ वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया मेरे आगे ।

होता है निहाँ गर्द में सेहरा मेरे होते,
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे ।

मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
तू देख के क्या रंग है तेरा मेरे आगे ।

सच कहते हो ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा हूँ न क्यों हूँ,
बैठा है बुत-ए-आईना सीमा मेरे आगे ।

फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मेरे आगे ।

नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क से गुज़रा,
क्यों कर कहूँ लो नाम न उसका मेरे आगे ।

ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र,
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे ।

आशिक़ हूँ पे माशूक़ फ़रेबी है मेर काम,
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे ।

ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते,
आई शब-ए-हिजराँ की तमन्ना मेरे आगे ।

है मौजज़न इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ काश ! यही हो,
आता है अभी देखिये क्या-क्या मेरे आगे ।

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है,
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे ।

हमपेशा-ओ-हममशरब-ओ-हमराज़ है मेरा,
‘गा़लिब’ को बुरा क्यों, कहो अच्छा मेरे आगे ।

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