Premchand – Dakshini Africa Mein Sher Ka Shikar | मुंशी प्रेमचंद – दक्षिणी अफ्रीका में शेर का शिकार | Story | Hindi Kahani

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Hindi Kala presents Munshi Premchand Story Dakshini Africa Mein Sher Ka Shikar | मुंशी प्रेमचंद – दक्षिणी अफ्रीका में शेर का शिकार Please read this story and share your views in the comments.

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Hindi Kahani Dakshini Africa Mein Sher Ka Shikar by Munshi Premchand

एक मशहूर शिकारी ने एक शेर के शिकार का हाल लिखा है। आज हम उसकी कथा उसी की ज़बान से सुनाते हैं-कई साल हुए एक दिन मैं नौरोबी की एक चौड़ी गली से जा रहा था कि एक शेरनी पर नज़र पड़ी जो अपने दो बच्चों समेत झाड़ियों की तरफ़ चली जा रही थी । शायद शिकार की तलाश में बस्ती में घुस आई थी। उसे देखते ही मैं लपककर अपने घर आया और एक रायफल लेकर फिर उसी तरफ़ चला। संयोग से चांदनी रात थी। मैंने आसानी से शेरनी को मार डाला और उसके दोनों बच्चों को पकड़ लिया। इन बच्चों की उम्र ज्यादा न थी, सिर्फ तीन हफ्ते के मालूम होते थे। एक नर था; दूखरा मादा । मैंने नर का नाम जैक और मादा का जल रखा। जैक तो जल्द बीमार होकर मर गया, जल बच रही । जल झपना नाम समझती और मेरी आवाज़ पहचानती थी । मैं जहाँ जाता, वहाँ कुत्ते की तरह मेरे पीछे-पीछे चलती । मेरे कमरे में फ़र्श पर लेटी रहती थी। अक्सर मेरे पैरों पर सो जाती और जागने के बाद अपने पंजे मेरे घुटनों पर रखकर बिल्ली की तरह मेरा सिर अपने चेहरे पर मलती।

एक दिन चाँदनी रात में जल को साथ लेकर सैर के लिए निकला। हम दोनों खुशी के साथ सड़क पर चले जा रहे थे। मैं यह बिल्कुल भूल गया था कि उस दिन होटल में नाच होनेवाला है । संयोग देखिए कि मैं और जल उस वक्त होटल के पास पहुँचे जब कोए मेहमान सवारी की तलाश में बाहर खड़ा था। उसने जब देखा, एक शेरनी सड़क के बीचों बीच उसकी तरफ़ चली आ रही है, तो वह इतना घबराया कि बयान से बाहर है और सामने की तरफ़ बेतहाशा भागा । उसे भागते देखकर और भी दो-तीन आदमी भाग चले । जल ने समझा यह भी कोए खेल है, वह भी उनके पीछे-पीछे दौड़ी । हंसते-हंसते मेरे पेट में बल पड़ गये, आखिर मैं भी जल के पीछे दौड़ा और बड़ी मुश्किल से जल को पकड़ पाया। यद्यपि उसने किसी को घायल नहीं किया; मगर आनन्द की ज़िन्दगी बितानेवालों की बहादुरी की कलई खुल गई । फिर मैं जल को लेकर चाँदनी रात में कभी बाहर न निकला ।

एक दिन मैं एक जगह दावत खाने गया। वहाँ से अपने बंगले की तरफ चला तो आधी रात हो गई थी। आधा रास्ता तै कर चुका था कि एकाएक बन्दूक चलने की आवाज़ सुनाई दी। ऐसा मालूम हुआ कि कोई आदमी घबराहट में शू श कर रहा है। जरा और आगे बढ़ा तो देखा कि एक संतरी लालटेन के खम्भे पर चढ़ा बदहवासी की हालत में शू-शू कर रहा है। मुझे देखते ही उसने कहा– साहब, ज़रा बचे रहिएगा; एक शेर बिल्कुल पास खड़ा है और घोड़े को खा रहा है। मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई तो पचास कदम के फासले पर एक शेर दिखाई दिया । वह सचमुच एक घोड़े को चट कर रहा था । सन्‍तरी के शोर-गुल की उसे बिल्कुल परवाह न थी।

मैंने संतरी को आवाज़ दी कि वह जहाँ है वहीं ठहरा रहे और मैं अकेले एक दोस्त के पास बन्दूक लेने गया। जब रायफल लेकर लौटा तो देखा कि शेर बैठा ओंठ चाट रहा है और सन्तरी ज्यों- का-त्यों खंभे से चिमटा खड़ा है। मैंने फौरन शेर पर बन्दूक चलाई। वह ज़ख़्मी तो हो गया, मगर मरा नहीं । वह बड़े ज़ोर से गरजा और एक तरफ को चल दिया । लेकिन मैं उसे कब छोड़नेवाला था, मैं खून का निशान देखता हुआ उसके पीछे चला। आखिर मैंने उसे खाड़ी के किनारे पर खड़े देखा। अबकी मेरी गोली काम कर गई, शेर गिर पड़ा । मैं खुश-खुश शेर के पास गया और उसे देखते ही पहचान गया । वह मेरी शेरनी जल थी ।

~ Premchand | प्रेमचंद | Buy Books by Premchand

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