Hindi Kala presents Wasim Barelvi Shayari Mohabbat Ke Dino Ki Yahi Kharabi hai. This is very famous Ghazal of the Shayar.
वसीम बरेलवी का नाम ग़ज़ल की दुनिया में किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। उनकी दिल को छूती ग़ज़लें ही उनका परिचय है। वसीम साहब बरेली (उत्तर प्रदेश) में रुहेलखंड विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग में प्रोफ़ेसर हैं। हिंदी कला आज आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है उनकी एक बहुत मशहूर ग़ज़ल ‘मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है’
वसीम बरेलवी की ग़ज़ल ‘मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है’ हिंदी लिपि में
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते
मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते
जिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का
उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते
ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना
बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते
बिसाते -इश्क पे बढ़ना किसे नहीं आता
यह और बात कि बचने के घर नहीं आते
‘वसीम’ जहन बनाते हैं तो वही अख़बार
जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
– वसीम बरेलवी
Wasim Barelvi’s Ghazal Mohabbat Ke Dino Ki Yahi Kharabi hai in Roman Transcript
Tumhari Raah Mein Mitti Ke Ghar Nahi Aate
Isliye To Tumhe Hum Nazar Nahi Aate
Mohabbat Ke Dino Ki Yahi Kharabi Hai
Yeh Rooth Jaye To Phir Lautkar Nahi Aate
Jinhe Saleeka Hai Tehzeeb-E-Gham Samjhne Ka
Unhi Ke Rone Mein Aansoo Nazar Nahi Aate
Khushi Ki Aankh Mein Aansoo Ki Bhi Jagah Rakhna
Bure Zamane Kabhi Poochkar Nahi Aate
Bisaat-E-Ishq Pe Badhna Kise Nahi Aata
Yah Aur Baat Ki Bachne Ke Ghar Nahi Aate
‘Wasim’ Zehan Banate Hai To Wahi Akhbaar
Jo Le Ke Ek Bhi Acchi Khabar Nahi Aate
~ Wasim Barelvi
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