Leo Tolstoy – Mrityu Ke Devta Aur Doot | लेव तोल्सतोय – मृत्यु के देवता और दूत | Story | Hindi Kahani
Hindi Kala presents Russian Author Leo Tolstoy Story Mrityu Ke Devta Aur Doot | लेव तोल्सतोय – मृत्यु के देवता और दूत. Please read this story and share your views in the comments.

Leo Tolstoy Story Mrityu Ke Devta Aur Doot | लेव तोल्सतोय – मृत्यु के देवता और दूत
एक बार मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को पृथ्वी पर भेजा, एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था।
आदेश पाकर देवदूत आया, लेकिन वहाँ जाकर वह बेहद चिंता में पड़ गया क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां वो भी जुड़वां–एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है, एक चीख रही है, पुकार रही है, एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं–तीन छोटी जुड़वां बच्चियां बेसुध और स्त्री मर गयी है, कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका था। परिवार में और कोई भी नहीं है।
इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा? उस देवदूत को जब ये खयाल आ गया तो वह बेहद दुखी मन से खाली हाथ वापस लौट गया औऱ बिना उस स्त्री की आत्मा को लिए ही अपने धाम पहुंच गया । उसने जाकर अपने प्रधान देवता से कहा कि मैं न ला सका उस स्त्री की आत्मा , मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको वर्तमान स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वां मासूम बच्चियां हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत माँ के स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन दान दे दिए जाए ? कम से कम ये बेसहारा लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं क्योंकि इस दुनिया में अब उन्हें कोई देखने वाला नहीं है।
मृत्यु के देवता ने उसकी बातों को ध्यान से सुनकर गुस्से में कहा…अच्छा तो तू बड़ा समझदार हो गया है ; उस व्यक्ति से भी ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है जो पूरी दुनिया का मालिक है ! तो तूने अपने जीवन में आज पहला पाप कर दिया है और इसकी तुझे सजा मिलेगी और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर वापस चले जाना पड़ेगा और जब तक तू तीन बार अपनी मूर्खता पर न हंस ले , तब तक वापस यहाँ न आ सकेगा।
वह देवदूत राजी हो गया दंड भोगने के लिए , लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं और तब अपनी मूर्खता पर हंसने का मौका कैसे आएगा?उसे लगा कि ये शायद असंभव है।
उस देवदूत को वापस पृथ्वी पर फेंक दिया गया।
वहीं पास में ही जहाँ देवदूत बेसुध पड़ा हुआ था,एक मोची सर्दियों के दिन करीब आने के कारण कुछ रुपये लेकर अपने बच्चों के लिए गर्म कपड़े और कंबल खरीदने शहर जा रहा था।उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को ही पड़े हुए ठंड में ठिठुरते देखा।
यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस मोची को देवदूत की हालत देखकर दया आ गयी और उसने कुछ सोच विचार कर बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उस देवदूत के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए।
देवदूत के पास न खाने के लिए कुछ था और न ही रहने का कोई ठिकाना।उसपर तरस खाकर मोची ने कहा कि तुम मेरे साथ मेरे घर चलो औऱ अगर तुम्हें देखकर मेरी पत्नी नाराज़ भी हो जाए तो बुरा मत मानना…क्योंकि बच्चों औऱ परिवार के कपड़े खरीदने के पैसे मैंने तुमपर ख़र्च कर दिए,इसे जानकर पत्नी जरूर नाराज़ होगी लेकिन फिर सब कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा।
उस देवदूत को अपने साथ लेकर मोची घर लौटा। लेकिन न तो मोची को देवदूत की सच्चाई का पता था औऱ न ही उसकी पत्नी को। जैसे ही देवदूत को ले कर मोची घर में पहुंचा, उसकी पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।
मोची के घर के माहौल को देखकर देवदूत पहली बार हंसा। उसे हँसते देख अचरज में मोची कहा, हंसते क्यों हो भाई, बात क्या है?
देवदूत ने गंभीरता से कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब सब बता दूंगा,लेकिन फिलहाल मुझसे कुछ मत पूछो।
दरअसल देवदूत पहली बार इसलिए हंसा क्योंकि उसने देखा कि इस मोची की पत्नी को पता ही नहीं है कि मोची एक देवदूत को अपने घर लाया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां अपने आप आ जाएंगी औऱ उनके सारे ग़म दूर हो जाएंगे,लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है! पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि उसने एक कंबल और बच्चों के कपड़े नहीं ख़रीदे । जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है–! घर में देवदूत आ गया है, जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे ,इसलिए देवदूत हंसा। उसे महसूस हुई अपनी मूर्खता–क्योंकि मोची की पत्नी अपने भविष्य को नहीं देख पा रही है जो उसके साथ होने वाला है!
बहुत जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, कुछ दिनों में ही उसने मोची के सब काम सीख लिए और फिर उस देवदूत के बनाए जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि मोची कुछ महीनों के भीतर ही धनवान हो गया।
साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे प्रदेश में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था जो बेहद खूबसूरत हुआ करते थे।
सम्राटों औऱ राजाओं के जूते वहां बनने लगे।मोची के घर धन की बरसात होने लगी । एक दिन प्रदेश के सम्राट का एक आदमी मोची के घर आया और उसने उसे एक बेशकीमती चमड़े के टुकड़े को देते हुए कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से कहीं मिलता नहीं, सम्राट के लिए अच्छे जूते बना दो लेकिन कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक बिलकुल बेहतरीन बनने हैं और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, चप्पल नहीं। क्योंकि उस दौर में संभवतः रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसे चप्पल पहना कर मरघट तक ले जाता था ।
मोची ने भी सम्राट के आदमी की पूरी बात को समझकर देवदूत से कहा कि चप्पल मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे,सम्राट जिंदा नहीं छोड़ेगा।
लेकिन पता नहीं उस देवदूत के दिमाग में क्या आया कि उसने एक चप्पल ही बना दिए।
बाद में जब मोची ने देखा कि चप्पल बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह डंडा उठाकर उसको मारने के लिए तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा! और तुझे बार-बार समझा कर कहा था कि चप्पल बनाने ही नहीं हैं, फिर चप्पल किसलिए?
देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा।उसे देखकर मोची हैरान…..!
तभी वही आदमी सम्राट के घर से दुबारा भागता हुआ आया। उसने कहा, जूते मत बनाना ,चप्पल ही बनाना क्योंकि सम्राट की अभी अभी मृत्यु हो गयी है। भविष्य अज्ञात है। सिवाय ऊपरवाले के और किसी को ज्ञात नहीं और नश्वर आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो चप्पल चाहिए।
उसके बाद तब वह मोची उस देवदूत के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा।
देवदूत ने कहा, कोई बात नहीं…मैं अपना दंड भोग रहा हूं इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं। लेकिन वह देवदूत आज दुबारा हंसा था । मोची ने फिर पूछा उसके हंसी का कारण?
उसने फिर कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं तब बताऊंगा….!
दरअसल वो देवदूत दुबारा हंसा …सिर्फ़ इसलिए कि भविष्य किसी को ज्ञात नहीं है फ़िरभी लोग असीमित आकांक्षाएं,ईर्ष्या, घृणा, द्वेष रखते हैं जो कि पूरी तरह व्यर्थ हैं… फ़िज़ूल की लालसा व लोभ करते हैं जो कि कभी पूरी नही होती । हम याचक की तरह मांगते हैं जो कभी नहीं मिलता क्योंकि कुछ और ही मिलना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं,चिंता करते हैं, परेशान होते हैं । चाहिए चप्पल और हम जूते बनवाते हैं। मरने का जब वक्त करीब आ रहा है तब जिंदगी का हम हंगामेदार आयोजन करते हैं।सिर्फ़ वर्तमान समय ही हमारा है लेकिन हम भूत औऱ भविष्य के बारे में दिन रात सोच कर बेमतलब की चिंता में मरे जा रहे हैं।
अब उस देवदूत को लगने लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं बेमतलब का उनके बीच में आया क्योंकि होनी तो बहुत पहले से तय है।
कुछ दिनों बाद एक तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियां उस मोची के यहां पहुचीं। उन तीनों लड़कियों की शादी हो रही थी इसलिए वे तीनों अपने लिए जूतों के आर्डर देने वहाँ गई थी। एक बूढ़ी महिला भी उनके साथ आयी थी जो बहुत अमीर दिख रही थी ।
देवदूत उन्हें देखकर पहचान गया, ये वही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह उनके मृत मां के पास छोड़ आया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब वर्तमान में बहुत स्वस्थ औऱ सुंदर दिख रही हैं।
उसने जानना चाहा कि क्या हुआ? उनके साथ यह बूढ़ी औरत कौन है?
अब बूढ़ी औरत ने सबकुछ बताना शुरू किया, उसने कहा कि ये तीनों बच्चियां मेरी नहीं हैं।इनके जन्म के दौरान भूख औऱ अभाव के कारण माँ के शरीर में दूध नही था और ये तीन बच्चियां जुड़वां।इनकी माँ इन्हें दूध पिलाते-पिलाते ही मर गयी। जब मैंने इन्हें देखा तो मुझें इन अनाथ बच्चियों पर दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं थे इसलिए मैंने इन तीनों बच्चियों को गोद ले ली।
बूढ़ी महिला ने अपनी बात को आगे बढ़ाई औऱ कहा कि अगर आज भगवान की कृपा से इनकी मां जिंदा रहती तो भी शायद ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। मां दुर्भाग्यवश भले ही मर गयी हो फ़िरभी ये तीनों बच्चियां बहुत बड़े धन-वैभव व संपदा में पलीं और अब मेरे बाद सारी संपदा की ये ही तीन मालकिन हैं।फ़िलहाल इन तीनों का एक सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।
देवदूत फिर तीसरी बार हंसा और विस्तार से मोची को उसने पूरी घटना बताई ।
उसने कहा… भूल मेरी थी। नियति बड़ी है और हम उतना ही देख पाते हैं जितनी समझ है लेकिन जो कभी नहीं देख पाते, बहुत वृहद विस्तार है उसका। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब वापस जा रहा हूँ।
उसके बाद देवदूत को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह वापस अपने धाम लौट गया।
Russian Story by Leo Tolstoy
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