Kashi Wala Pandit – Train Ka AC Compartment | काशी वाला पंडित – ट्रैन का एसी कंपार्टमेंट | Story | Hindi Kahani

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Hindi Kala presents Kashi Wala Pandit Ki Kahani Train Ka AC Compartment | काशी वाला पंडित – ट्रैन का एसी कंपार्टमेंट

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Hindi Story ‘Train Ka AC Compartment’

Kashi Wala Pandit – Train Ka AC Compartment | काशी वाला पंडित – ट्रैन का एसी कंपार्टमेंट

ट्रेन के ए.सी.कम्पार्टमेंट में मेरे सामने की सीट पर बैठी लड़की ने मुझसे पूछा ” हैलो, क्या आपके पास इस मोबाइल की सिम निकालने की पिन है??” 

उसने अपने बैग से एक फोन निकाला, वह नया सिम कार्ड उसमें डालना चाहती थी। सिम स्लॉट खोलने के लिए पिन की जरूरत पड़ती है, जो उसके पास नहीं थी।मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और अपने क्रॉस बैग से पिन निकालकर लड़की को दे दी। लड़की ने थैंक्स कहते हुए पिन ले ली और सिम डालकर पिन मुझे वापस कर दी। 

थोड़ी देर बाद वो फिर से इधर-उधर ताकने लगी,मुझसे रहा नहीं गया..मैंने पूछ लिया “कोई परेशानी??”

वो बोली सिम स्टार्ट नहीं हो रही है, मैंने मोबाइल मांगा, उसने दिया। मैंने उसे कहा कि सिम अभी एक्टिवेट नहीं हुई है, थोड़ी देर में हो जाएगी। एक्टिव होने के बाद आईडी वेरिफिकेशन होगा, उसके बाद आप इसे इस्तेमाल कर सकेंगी। 

लड़की ने पूछा, आईडी वेरिफिकेशन क्यों?? 

मैंने कहा ” आजकल सिम वेरिफिकेशन के बाद एक्टिव होती है, जिस नाम से ये सिम उठाई गई है, उसका ब्यौरा पूछा जाएगा बता देना”

लड़की बुदबुदाई  “ओह्ह “

मैंने दिलासा देते हुए कहा “इसमें परेशानी की कोई बात नहीं।”

वो अपने एक हाथ से दूसरा हाथ दबाती रही, मानो किसी परेशानी में हो। मैंने फिर विनम्रता से कहा “आपको कहीं कॉल करना हो तो मेरा मोबाइल इस्तेमाल कर लीजिए”

लड़की ने कहा “जी फिलहाल नहींं। थैंक्स, लेकिन ये सिम किस नाम से खरीदी गई है मुझे नहीं पता”

मैंने कहा “एक बार एक्टिव होने दीजिए, जिसने आपको सिम दी है उसी के नाम की होगी” 

उसने कहा “ओके, कोशिश करते हैं।” 

मैंने पूछा “आपका स्टेशन कहाँ है??”

लड़की ने कहा “दिल्ली”

और आप?? लड़की ने मुझसे पूछा 

मैंने कहा “दिल्ली ही जा रहा हूँ, एक दिन का काम है,

आप दिल्ली में रहती हैं या…?”

लड़की बोली “नहीं-नहीं, दिल्ली में कोई काम नहीं,ना ही मेरा घर है वहाँ।”

तो ???? मैंने उत्सुकता वश पूछा

वो बोली “दरअसल ये दूसरी ट्रेन है, जिसमें आज मैं हूँ, और दिल्ली से तीसरी गाड़ी पकड़नी है, फिर हमेशा के लिए आज़ाद” 

आज़ाद?? 

लेकिन किस तरह की कैद से?? 

मुझे फिर जिज्ञासा हुई किस कैद में थी ये कमसिन अल्हड़-सी लड़की.. 

लड़की बोली, उसी कैद में थी, जिसमें हर लड़की होती है। जहाँ घरवाले कहे शादी कर लो, जब जैसा कहे, वैसा करो। मैं घर से भाग चुकी हूं..।

मुझे ताज्जुब हुआ,मगर अपने ताज्जुब को छुपाते हुए मैंने हंसते हुए पूछा “अकेली भाग रही हैं आप? आपके साथ कोई नजर नहीं आ रहा? “

वो बोली “अकेली नहीं,साथ में है कोई”

कौन? मेरे प्रश्न खत्म नहीं हो रहे थेः

दिल्ली से एक और ट्रेन पकड़ूँगी, फिर अगले स्टेशन पर वो जनाब मिलेंगे और उसके बाद हम किसी को नहीं मिलेंगे..।

ओह्ह,तो ये प्यार का मामला है। 

उसने कहा “जी।”

मैंने उसे बताया, ‘मैंने भी कहा मेरी भी गर्ल फ्रेंड है।’

ये बात सुनकर वो खुश हुई, बोली “वाओ, आप भी भागने वाले हो क्या आपकी गर्ल फ्रेंड के साथ ?” मैंने कहा नही

वो मेरी बात सुनकर वो मुझसे बात करने में रुचि लेने लगी और मुझसे बोली आपकी लव स्टोरी सुनाओ कब कैसे कहाँ से शुरू हुई”

मैंने कहा “कब कैसे कहाँ? वो मैं बाद में बताऊंगा,पहले आप बताओ, आपके घर में कौन-कौन है?

उसने होशियारी बरतते हुए कहा,”वो मैं आपको क्यों बताऊं? मेरे घर में कोई भी हो सकता है, मेरे पापा-माँ भाई-बहन या हो सकता है भाई ना हो सिर्फ बहनें हो, या ये भी हो सकता है कि बहनें ना हो और 2-4 गुस्सा करने वाले बड़े भाई हो।” 

मतलब मैं आपका नाम भी नहीं पूछ सकता “मैंने काउंटर मारा।”

वो बोली, ‘कुछ भी नाम हो सकता है मेरा,टीना,मीना,रीना, कुछ भी।’ 

बहुत बातूनी लड़की थी वो.. थोड़ी इधर-उधर की बातें करने के बाद उसने मुझे टॉफी दी जैसे छोटे बच्चे देते हैं क्लास में।

बोली आज मेरा बर्थडे है। 

मैंने उसकी हथेली से टॉफी उठाते बधाई दी और पूछा “कितने साल की हुई हो?”

वो बोली “18” 

“मतलब भागकर शादी करने की कानूनी उम्र हो गई आपकी” 

वो “हंसी” 

कुछ ही देर में काफी फ्रैंक हो चुके थे हम दोनों, जैसे बहुत पहले से जानते हो एक-दूसरे को.. 

मैंने उसे बताया, “मेरी उम्र 24 साल है, यानि 6 साल बड़ा हूं।”

उसने चुटकी लेते हुए कहा “लग तो नहीं रहे हो”

मैं मुस्कुरा दिया ।

मैंने उससे पूछा “तुम घर से भागकर आई हो, तुम्हारे चेहरे पर चिंता के निशान जरा भी नहीं है, इतनी बेफिक्री मैंने पहली बार देखी।” 

खुद की तारीफ सूनकर वो खुश हुई। बोली, “मुझे उन जनाब ने, मेरे लवर ने पहले से ही समझा दिया था कि जब घर से निकलो तो बिल्कुल बिंदास रहना, घरवालों के बारे में बिल्कुल मत सोचना, बिल्कुल अपना मूड खराब मत करना, सिर्फ मेरे और हम दोनों के बारे में सोचना और मैं वही कर रही हूँ।”

मैंने फिर चुटकी ली, कहा “उसने तुम्हें मुझ जैसे अनजान मुसाफिरों से दूर रहने की सलाह नहीं दी?”

उसने हंसकर जवाब दिया “नहीं, शायद वो भूल गया होगा ये बताना।”

मैंने उसके प्रेमी की तारीफ करते हुए कहा, “वैसे तुम्हारा बॉय फ्रेंड काफी टैलेंटेड है। उसने किस तरह से तुम्हें अकेले घर से रवाना किया, नई सिम और मोबाइल दिया, तीन ट्रेन बदलवाई.. ताकि कोई ट्रेक ना कर सके, वेरी टैलेंटेड पर्सन।”

लड़की ने हामी भरी, ” बोली बहुत टैलेंटेड है वो, उसके जैसा कोई नहीं।”

लड़की ने कहा “वेरी इम्प्रेसिव”  

मैं मुस्कुराकर खिड़की की तरफ देखने लगा

लड़की ने पूछा, “अच्छा आप लव मैरिज करेंगें,या फिर आप भागकर शादी करेंगे ?? कैसे रहेगें और कैसे गुजारा करेंगे उस वक्त??

उसके हर सवाल और हर बात में मुझे महसूस हो रहा था कि ये लड़की लकड़पन के शिखर पर है, बिल्कुल नासमझ और मासूम छोटी बहन-सी। 

मैंने उसे बताया कि हम भागकर शादी नहीं करेंगे, और ये भी है कि उसके पापा ने मुझे पहली नजर में सख्ती से रिजेक्ट कर दिया था।” 

उन्होंने आपको रिजेक्ट क्यों किया?? लड़की ने पूछा

मैंने कहा “रिजेक्ट करने का कुछ भी कारण हो सकता है,मेरी जाति,मेरा काम,,घर परिवार।

“बिल्कुल सही।”लड़की ने सहमति दर्ज कराई और आगे पूछा,”फिर आपने क्या किया?”

मैंने कहा,”मैंने कुछ नहीं किया।उसके पिता ने रिजेक्ट कर दिया। वहीं, से मैंने अपने बारे में अलग से सोचना शुरू कर दिया था। खुशबू ने मुझे कहा कि भाग चलते हैं, मेरी गर्लफ्रेंड का नाम खुशबू है..मैंने दो टूक मना कर दिया। वो दो दिन तक लगातार जोर देती रही कि भाग चलते हैं। 

मैं मना करता रहा.. मैंने उसे समझाया, “भागने वाले जोड़े में लड़के की इज़्ज़त पर पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता, जबकि लड़की के पूरे कुल की इज्ज़त धुल जाती है। भगाने वाला लड़का उसके दोस्तों में हीरो माना जाता है,लेकिन इसके विपरीत जो लड़की प्रेमी संग भाग रही है, वो कुल्टा कहलाती है। मुहल्ले के लड़के उसे चालू कहते है। बुराइयों के तमाम शब्दकोष लड़की के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। भागने वाली लड़की आगे चलकर 60 साल की वृद्धा भी हो जाएगी तब भी जवानी में किये उस कांड का कलंक उसके माथे पर से नहीं मिटता। 

मैं मानता हूँ कि लड़का-लड़की को तौलने का ये दोहरा मापदंड गलत है, लेकिन हमारे समाज में है तो यही।ये नजरिया गलत है,मगर सामाजिक नजरिया यही है।

वो अपने नीचे का होंठ दांतों तले पीसने लगी, उसने पानी की बोतल का ढक्कन खोलकर एक घूंट पिया। 

मैंने कहा अगर मैं उस दिन उसे भगा ले जाता तो उसकी माँ तो शायद कई दिनों तक पानी भी ना पीती, 

इसलिए मेरी हिम्मत ना हुई कि ऐसा काम करूँ.. मैं जिससे प्रेम करूँ, उसके माँ-बाप मेरे माँ-बाप के समान ही है, चाहे शादी ना हो, तो ना हो।

कुछ पल के लिए वो सोच में पड़ गई , लेकिन मेरे बारे में और अधिक जानना चाहती थी। उसने पूछा “फिर आपकी शादी कैसे होगी???

मैंने बताया, ” खुशबू की सगाई कहीं और कर दी गई थी। धीरे-धीरे सबकुछ नॉर्मल होने लगा था। खुशबू और उसके मंगेतर की बातें भी होने लगी थी फोन पर, लेकिन जैसे-जैसे शादी नजदीक आने लगी, उन लोगों की डिमांड बढ़ने लगी।”

डिमांड मतलब ‘लड़की ने पूछा’

डिमांड का एक ही मतलब होता है, दहेज की डिमांड। परिवार में सबको सोने से बने तोहफे दो, दूल्हे को लग्जरी कार चाहिए, सास और ननद को नेकलेस दो वगैरह वगैरह, बोले हमारे यहाँ रीत है। लड़का भी इस रीत की अदायगी का पक्षधर था। वो सगाई मैंने तुड़वा डाली..इसलिए नहीं की सिर्फ मेरी शादी उससे हो जाये, बल्कि ऐसे लालची लोगों में खुशबू कभी खुश नहीं रह सकती थी  ना उसका परिवार, फिर किसी तरह घरवालों को समझा-बुझाकर मैं फ्रंट पर आ गया और हमारी शादी हो जायेगी। ये सब किस्मत की बात है.. 

लड़की बोली, “चलो अच्छा हुआ आप मिल गए, वरना वो गलत लोगों में फंस जाती।” 

मैंने कहा, “जरूरी नहीं कि माता-पिता का फैसला हमेशा सही हो और ये भी जरूरी नहीं कि प्रेमी जोड़े की पसंद सही हो.. दोनों में से कोई भी गलत या सही हो सकता है..काम की बात यहाँ ये है कि कौन ज्यादा वफादार है।”

लड़की ने फिर से पानी का घूंट लिया और मैंने भी.. लड़की ने तर्क दिया, “हमारा फैसला गलत हो जाए तो कोई बात नहीं, उन्हें ग्लानि नहीं होनी चाहिए।”

मैंने कहा, “फैसला ऐसा हो जो दोनों का हो, बच्चों और माता-पिता दोनों की सहमति, वो सबसे सही है। बुरा मत मानना मैं कहना चाहूंगा कि तुम्हारा फैसला तुम दोनों का है, जिसमे तुम्हारे पेरेंट्स शामिल नहीं है, ना ही तुम्हें इश्क का असली मतलब पता है अभी।”

उसने पूछा, “क्या है इश्क़ का सही अर्थ?” 

मैंने कहा, “तुम इश्क में हो, तुम अपना सबकुछ छोड़कर चली आई ये सच्चा इश्क़ है, तुमने दिमाग पर जोर नहीं दिया ये इश्क है, फायदा नुकसान नहीं सोचा ये इश्क है…तुम्हारा दिमाग़ दुनियादारी के फितूर से बिल्कुल खाली था, उस खाली जगह में इश्क का फितूर भर दिया गया। जिन जनाब ने इश्क को भरा क्या वो इश्क में नहीं है.. यानि तुम जिसके साथ जा रही हो वो इश्क में नहीं, बल्कि होशियारी हीरोगीरी में है। जो इश्क में होता है वो इतनी प्लानिंग नहीं कर पाता है, तीन ट्रेनें नहीं बदलवा पाता है, उसका दिमाग इतना काम ही नहीं कर पाता.. कोई कहे मैं आशिक हूं और वो शातिर भी हो ये नामुमकिन है।

मजनूं इश्क में पागल हो गया था, लोग पत्थर मारते थे उसे, इश्क में उसकी पहचान तक मिट गई।

उसे दुनिया मजनूं के नाम से जानती है, जबकि उसका असली नाम कैस था,जो नहीं इस्तेमाल किया जाता। वो शातिर होता तो कैस से मजनूं ना बन पाता। फरहाद ने शीरीं के लिए पहाड़ों को खोदकर नहर निकाल डाली थी और उसी नहर में उसका लहू बहा था, वो इश्क़ था। इश्क़ में कोई फकीर हो गया, कोई जोगी हो गया, किसी मांझी ने पहाड़ तोड़कर रास्ता निकाल लिया..किसी ने अतिरिक्त दिमाग़ नहीं लगाया..चालाकी नहीं की ।

लालच ,हवस और हासिल करने का नाम इश्क़ नहीं है.. इश्क-समर्पण करने को कहते हैं, जिसमें इंसान सबसे पहले खुद का समर्पण करता है, जैसे तुमने किया, लेकिन तुम्हारा समर्पण हासिल करने के लिए था, यानि तुम्हारे इश्क में लालच की मिलावट हो गई।

लकड़ी अचानक खो सी गई..

उसकी खिलख़िलाहट और खिलंदड़ापन एकदम से खमोशी में बदल गया.. मुझे लगा मैं कुछ ज्यादा बोल गया, फिर भी मैंने जारी रखा। मैंने कहा, ” प्यार तुम्हारे पापा तुमसे करते हैं, कुछ दिनों बाद उनका वजन आधा हो जाएगा। तुम्हारी माँ कई दिनों तक खाना नहीं खाएगी ना पानी पियेगी.. जबकि आपको अपने आशिक को आजमा कर देख लेना था, ना तो उसकी सेहत पर फर्क पड़ता, ना दिमाग़ पर, वो अक्लमंद है, अपने लिए अच्छा सोच लेता।

आजकल गली-मोहल्ले के हर तीसरे लौंडे लपाटे को जो इश्क हो जाता है, वो इश्क नहीं है, वो सिनेमा जैसा कुछ है। एक तरह की स्टंटबाजी, डेरिंग, अलग कुछ करने का फितूर..और कुछ नहीं।

लड़की का चेहरे का रंग बदल गया, ऐसा लग रहा था वो अब यहाँ नहीं है, उसका दिमाग़ किसी अतीत में टहलने निकल गया है। मैं अपने फोन को स्क्रॉल करने लगा.. लेकिन मन की इंद्री उसकी तरफ थी। 

थोड़ी ही देर में उसका और मेरा स्टेशन आ गया.. बात कहाँ से निकली थी और कहाँ पहुँच गई.. उसके मोबाइल पर मैसेज टोन बजी, देखा, सिम एक्टिवेट हो चुकी थी.. उसने चुपचाप बैग में से आगे का टिकट निकाला और फाड़ दिया.. मुझे कहा एक कॉल करना है, मैंने मोबाइल दिया.. उसने नम्बर डायल करके कहा, “सोरी पापा और सिसक-सिसक कर रोने लगी। सामने से पिता भी फोन पर बेटी को संभालने की कोशिश करने लगे.. उसने कहा पिताजी आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए मैं घर आ रही हूँ..दोनों तरफ से भावनाओं का सागर उमड़ पड़ा।”

हम ट्रेन से उतरे, उसने फिर से पिन मांगी, मैंने पिन दी.. उसने मोबाइल से सिम निकालकर तोड़ दी और पिन मुझे वापस कर दिया।

-देश की सभी बेटियों को समर्पित-

~ काशी वाला पंडित

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