
जब हमारी त्वचा को चोट लगती है, तो यह एक अजीब तरह से ‘चिल्लाती’ है. यह कोई आवाज़ नहीं होती, बल्कि एक ऐसा छुपा हुआ अलार्म सिस्टम है जो शरीर के अंदर ही काम करता है।
पहले माना जाता था कि सिर्फ नसें ही बिजली के संकेत भेजती हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने पाया है कि हमारी त्वचा की कोशिकाएं भी चोट लगने पर तेजी से एक-दूसरे को बिजली के संकेत भेजकर खतरे के बारे में बताती हैं।
यूमास एमहर्स्ट के वैज्ञानिकों ने अपनी लैब में त्वचा की कोशिकाओं पर एक छोटा सा लेज़र से घाव करके यह खोज की है।
उन्होंने देखा कि घायल कोशिकाएं आसपास की स्वस्थ कोशिकाओं को हल्की बिजली की तरंगें भेज रही थीं।
यह तरंगें 10 मिलीमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से फैलती हैं और सैकड़ों माइक्रोमीटर दूर तक जाती हैं।
ये संकेत कैल्शियम चैनलों जैसे छोटे-छोटे रास्तों से गुजरते हैं और चोट लगने के घंटों बाद तक एक्टिव रहते हैं।
यह खोज चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। वैज्ञानिक इस प्राकृतिक चेतावनी प्रणाली का उपयोग करके स्मार्ट बैंडेज और पहनने योग्य सेंसर बनाने की उम्मीद कर रहे हैं जो घावों का तेजी से पता लगा सकें और उनका इलाज कर सकें।
कल्पना कीजिए कि भविष्य में कृत्रिम त्वचा भी महसूस कर सकेगी, खतरे का संकेत दे सकेगी और अपनी खुद की मरम्मत की प्रक्रिया शुरू कर सकेगी। यह एक ऐसा भविष्य होगा जहाँ त्वचा की यह ‘खामोश चीख’ हमारे स्वास्थ्य और ठीक होने की प्रक्रिया को एक नई दिशा देगी।
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