Jagjit Singh’s Ghazal Hazaron Khwahishen Aisi Lyrics in Hindi & English with meaning (Translation). The Ghazal is written by Mirza Ghalib and it’s from the album Mirza Ghalib – TV Serial.

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी एक बहुत ही प्रसिद्ध ग़ज़ल है, जिसे महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने लिखा था। इसे प्रसिद्ध गायक जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ और संगीत दिया है, जिससे यह और भी लोकप्रिय हो गई। इस ग़ज़ल में ग़ालिब ने अपनी इच्छाओं, प्रेम में मिली निराशा और जीवन के तानों-बानों को बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है। यह ग़ज़ल आज भी उर्दू शायरी की सबसे बेहतरीन रचनाओं में गिनी जाती है।
यह ग़ज़ल मिर्ज़ा ग़ालिब की सबसे मशहूर ग़ज़लों में से एक है और इसे कई गायकों ने गाया है, लेकिन जगजीत सिंह का अंदाज़ बहुत खास है। इस ग़ज़ल को टीवी सीरियल ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ (1988) में भी शामिल किया गया था, जहाँ जगजीत सिंह ने ही सभी ग़ज़लों को गाया था।
Ghazal | Hazaron Khwahishen Aisi |
Album | Mirza Ghalib – TV Serial (1988) |
Singer | Jagjit Singh |
Music | Jagjit Singh |
Lyricist | Mirza Ghalib |
Actors | NA |
हज़ारों ख़वाहिशें ऐसी ग़ज़ल हिन्दी लिरिक्स
हज़ारों ख़वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
(ख़्वाहिश = इच्छा, अभिलाषा)
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं, लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले
(ख़ुल्द = स्वर्ग, जन्नत), (आदम = सबसे पहला मनुष्य)
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं, जिस काफ़िर पे दम निकले
(काफ़िर = ईश्वर को ना मानने वाला, यहाँ प्रेमिका के लिए इस्तेमाल किया है)
कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा, ग़ालिब. और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था, कि हम निकले
(वाइज़ = धर्मोपदेशक)
-मिर्ज़ा ग़ालिब
ख़ुदा के वास्ते पर्दा ना काबे से उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा ना हो याँ भी वही काफ़िर सनम निकले
-बहादुर शाह ज़फ़र
Hazaron Khwahishen Aisi Lyrics in English with Meaning (Translation)
Hazaaron Khwahishain Aisi Ke Har Khwahish Pe Dum Nikle
Bahot Nikle Mere Armaan Lekin Phir Bhi Kam Nikle
Nikalna Khud Se Aadam Ka Sunte Aayain Hain Lekin
Bohot Be-Aabru Hokar Tere Kooche Se Ham Nikle
Mohabbat Mein Naheen Hai Farq Jeene Aur Marne Kaa
Usee Ko Dekh Kar Jeete Hain Jis Kaafir Pe Dam Nikle
Kahaan Maikhaane Ka Darwaaza ‘Ghalib’ Aur Kahaan Waaiz
Par Itana Jaante Hain Kal Wo Jaata Tha Ke Ham Nikle
-Mirza Ghalib
Khuda Ke Waaste Parda Na Kaabe Se Uthaa Zaalim
Kaheen Aisa Na Ho Yaan Bhi Wohi Kaafir Sanam Nikle
–Bahadur Shah Zafar
FAQs (Frequently Asked Questions)
Mirza Ghalib – TV Serial (1988)
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