Hindi Kala presents Poetry by MileeTrishna who is also known as lucknowwali on Instagram and shares her beautiful poetry.
परिचय
मिली तृष्णा ( असल नाम मिली पाण्डेय) हिन्दी साहित्य की नवोदित रचनाकारा हैं, विद्यालय स्तर की शिक्षा लखनऊ के भारतीय विद्या भवन विद्यालय से ग्रहण करी। लखनऊ के साहित्यिक व सांस्कृतिक वातावरण ने ही कविताओं से प्रेम करवा दिया। कक्षा ८ वीं से ही ‘मिलीतृष्णा’ उपनाम से इन्होंने काव्यरचना आरम्भ कर दी थी। मिली राजनीतिक विज्ञान व हिन्दी साहित्य की छात्रा हैं। वर्तमान समय में, हैदराबाद में निवासित हैं।
Poetry by MileeTrishna | मिलीतृष्णा की कवितायें
वह पुरुष!
वह धरा समान विनीत है,
और सागर जैसा स्थिर,
उसकी उपस्थिति दूर करे,
हृदय भीतर तिमिर।
वो जिधर भी जाता है,
हवाऍं गुनगुनाती हैं,
वह जब भी मुस्कुराता है,
कविताऍं स्वयं लिख जाती हैं!
गम्भीर तनिकभर बाहर है,
और नर्म सदा वह भीतर है!
वह साधारण-सा मानव है,
पर ईश्वर से एक पद ऊपर है!
वो पुरुष वृक्ष सा स्थाई है,
उसके चिंतन में गहराई है,
पिता शिरोमणि है जीवन का,
संघर्ष उसकी परछाई है।
©मिलीतृष्णा
कान्हा मन में
बिरह भी भाए, कान्हा तोरी,
तोहे स्मरण करें अखियाॅं मोरी,
जो स्मरण करें, तो मुस्काएँ,
स्मृतियों में रैन बीती जाए!
कान्हा है मोरे आस-पास,
हृदय में पलती प्रेम-प्यास,
कण-कण , मन-मन में निहित,
तोरे स्पर्श मात्र से हो परहित!
मोरा मन समझा जीवन दुविधा,
मोहे दिखलाए प्रतिक्षण विविधा,
तोहे पाकर कान्हा, मन संवर गया,
सब दुःख-द्वेष हृदय से उतर गया!
चाहे उधेड़े जग कष्टों का सीवन,
रुदन में व्यतीत ना मोरा जीवन
तोरे ध्यान में कान्हा कर्म करूॅं,
जो कर्म करूॅं, क्यों जग को डरूॅं?
ज्यों अंधराया मन त्यों दृष्टि बने,
मैं भटकी ‘तृष्णा’, तुम सृष्टि बने,
बिताऊॅं जीवन, मग्न करूॅं प्रेम-गान,
कान्हा मोरी मृत्यु में भी विराजमान!
©मिलीतृष्णा | Poetry by MileeTrishna
मैं!
मैं कोई विद्वान नहीं,
ना मैं कोई अज्ञानी हूॅं,
तिनकाभर अभिमान नहीं,
पर हॉं मैं स्वाभिमानी हूॅं,
मेरा दर्पण मेरी ऑंखें हैं,
मेरा परिचय मेरी बातें हैं,
मुझे प्रासादों का मोह नहीं,
माॅं की गोद ही मेरी सांसे हैं,
मैं निरंतर प्रयास में बहता हूॅं,
कि गर्भ का ऋण उतारूॅं मैं,
जो भय मारे मुझको भीतर से,
उस भय को भीतर ही मारूॅं मैं,
तुममें-मुझमें कोई मेल नहीं,
मेरे विरुद्ध विफल प्रयास सारे हैं,
मुझे उनसे सहारे की क्या आशा,
जो मात्र भाग्य के सहारे हैं,
तुम बैठे जीवन को कोसते हो,
मैं पद-पद आगे बढ़ता हूॅं,
तुम जिन क्षणों में स्वयं से लड़ते हो,
मैं उन क्षणों में स्वयं को गढ़ता हूॅं।
©मिलीतृष्णा
मृत्यु का जन्म!
कालजयी अनैतिकता का,
जब सृजन हुआ है,
तब मृत्यु का जन्म हुआ है।
सुख, शान्ति, स्नेह, कान्ति का
दृश्यमान जब हनन हुआ है,
तब मृत्यु का जन्म हुआ है!
यह कैसा अंधकार छाया है!
यम के अंतर्मन की काया है?
जीवन ये कैसी माया है?
कब, कौन, कहाॅं जान पाया है?
सब दैत्य यही पर जनते है,
पलते हैं, यहीं मरते हैं,
है सही-गलत का बोध किसे,
मानव ही कौन बन पाया है?
यहाॅं शस्त्र चलाया जाता है,
जब सत्य उठाया जाता है,
कोटि-कोटि सिर कटते हैं,
और शास्त्र जलाया जाता है।
आँगन की किलकारी को,
किया भस्म यहाॅं पर नारी को,
कुचला कितनो का मान यहाॅं,
है नहीं किसी को भान यहाॅं।
आकाश यहाॅं पथरा-सा गया,
जीवन कुछ यूँ मुरझा-सा गया,
हुआ बन्जर पूरा धरती लोक,
मानो पाताल ही आ टकरा-सा गया।
हम ज्ञानी है” — इनकी भूल है यह,
काल के क़दमों की धूल हैं यह,
जान अन्त भी यह रुके नहीं,
मैं स्पष्ट कहूॅं, “हाॅं! मूढ़ हैं यह।”
बचाओ, बचाओ चिल्लाते हैं,
स्वयं ही मार काट मचाते हैं,
जो समझे स्वयं को पराक्रमी,
क्षणभर में मिट्टी हो जाते हैं!
संसार पर इनका एकाधिकार नहीं,
संसार इनका साम्राज्य नहीं,
पल दो पल के मेहमान है बस,
इनको, सच का आभास नहीं!
यह अपने कर्मों के बंधक हैं,
यह मानवता के भक्षक हैं,
हाड़ मांस में गुथे हुए दानव है,
यह बस पन्नों पर मानव हैं!
नादान है यह, हैवान भी है,
सब जाने हैं, अनजान भी है,
पृथ्वी का शोषण करते हैं,
मृत्यु के जन्म पर मरते हैं,
…..मृत्यु के जन्म पर मरते हैं!
©मिलीतृष्णा | Poetry by MileeTrishna
थमना मत! | Poetry by MileeTrishna
काल तलवार उठाएगा,
निस्संदेह तुझे सताएगा,
पर गर तू हार गया आज,
निश्चित कल को पछताएगा,
तुझे आज से लड़ना है,
चाहे जो हो आगे बढ़ना है,
वो लाख़ हंसेगे तुझ पर,
तुझे खुद को साबित करना है,
संकट में लड़खड़ाना मत,
तू लक्ष्य से दृष्टि हटाना मत,
गिर कर उठना सैकड़ों बार,
अन्याय समक्ष नज़र झुकाना मत,
वो जब शस्त्र चलाएंगे,
तुम शास्त्र से उन्हें हरादेना,
वो जब शास्त्र जलाएंगे,
तो तुम भी शस्त्र उठा लेना,
वो सत्य से भयभीत हैं,
तुझे गलत बर्दाश्त नहीं,
तू निर्भीक होकर ललकार उन्हें,
कि तू कायरता का ग्रास नहीं,
रुक ना मत अंधियारों से डरकर,
तेरी गति आशा की अभिव्यक्ति है,
अग्नि दे हृदय संकल्प को,
तेरे भीतर की लौ, तेरी शक्ति है।
पर याद रहे इन प्रयासों में,
तुम स्वयं को नहीं भुला देना,
झूठी मुस्कानों के भीतर,
तुम मन को नहीं रुला देना,
तू मुख स्वयं से मोड़ मत,
दम शत्रु के आगे तोड़ मत,
प्रयास विफल नहीं जाते हैं,
बस साथ स्वयं का छोड़ मत।
शौहरत उनकी किस मूल्य की?
जो अपने अस्तित्व को खोते हैं,
जो स्व: अस्तित्व अपनाते हैं,
असल वीर वही होते हैं।
©मिलीतृष्णा
हमें क्या ही करना!
तुम जाहिल को आलीम लिख दो,
हमें क्या ही करना!
सब अख़बार तुम्हारे हैं,
हमें क्या ही करना!
तस्वीरें आब-ए-चश्म से लदीं पड़ीं हैं,
लदीं हैं, लदी रहने दो, हमें क्या ही करना!
आबाद सर-ज़मीं बर्बादी की कगार पर,
कत्ल मुल्क का होने दो, हमें क्या ही करना!
अमन-औ-चैन से हमें बेहद इंकार है,
इन्सानियत मरती है, मरने दो,
हमें क्या ही करना!
गम़दीदा माहौल मगर हमें फिक्र नहीं,
ग़म गैरों का है, हमें क्या ही करना!
हम जल्लाद को भी जलाल कह देगें,
न’अश उठें फिर कितनी ही,
हमें क्या ही करना!,
बे-आबरू करे कोई कलम, कितना ही हमको,
हम बे-इम्तियाज़ क़ौम हैं, हमें क्या ही करना!
©मिलीतृष्णा | Poetry by MileeTrishna
जीवन एक रण! | Poetry by MileeTrishna
जीवन प्रतिक्षण है एक रण,
कलेश-विपदा इसके आभूषण!
जो डटकर क्रान्ति लाता है,
वही शूरवीर कहलाता है!
संसार पर कैसा दोष धरूॅं,
मैं कैसा हाहाकार करूॅं?
भय में जीता, मैं रहता मौन,
मेरा मुझसे बढ़कर शत्रु कौन?
किंतु है कष्टों से शौर्य बड़ा ,
मैंने वर्षों तक युद्ध लड़ा,
देखो! विजय केतु लहराया है,
मैंने आज मुझे हराया है!
©मिलीतृष्णा
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हरे कृष्णा